कॉन्ट्रैक्टर की संघर्ष से सफलता की प्रेरणादायक कहानी - ईंट-पत्थर से सपनों की इमारत तक

कॉन्ट्रैक्टर की संघर्ष से सफलता की कहानी, जिसमें पठानकोट, दिल्ली, मुंबई, दुबई और कुवैत का सफ़र है — और एक वेबसाइट जिसने उसकी किस्मत बदल दी।

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8/10/20251 min read

worm's-eye view photography of concrete building
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ईंट-पत्थर से सपनों की इमारत तक – गुरप्रीत सिंह कॉन्ट्रैक्टर की कहानी

गुरप्रीत सिंह पंजाब के पठानकोट में पैदा हुए। बचपन से ही उन्होंने अपने पिता के साथ निर्माण कार्य (कंस्ट्रक्शन) में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। स्कूल खत्म होते-होते उन्हें ईंट, सीमेंट और नक्शों की समझ आ गई थी, लेकिन आर्थिक हालात कमजोर थे।

दिल्ली और मुंबई का संघर्ष

काम सीखने के बाद गुरप्रीत बेहतर मौके की तलाश में दिल्ली आए। यहाँ उन्होंने छोटे-मोटे प्रोजेक्ट लिए, लेकिन बड़े कॉन्ट्रैक्ट हासिल करना आसान नहीं था।
कुछ समय बाद वे मुंबई चले गए। यहाँ भी उन्होंने बिल्डिंग रिपेयर और छोटे निर्माण कार्य किए, लेकिन कॉम्पिटिशन ज़्यादा और मुनाफा कम था।

विदेश की राह

अच्छी कमाई की उम्मीद में गुरप्रीत ने पासपोर्ट बनवाया और दुबई का रुख किया। वहाँ उन्हें बड़ी कंस्ट्रक्शन साइट्स पर काम मिला, लेकिन 12-12 घंटे की मेहनत के बाद भी बचत मामूली थी।
कुछ साल बाद वे कुवैत गए, जहाँ सैलरी थोड़ी बेहतर थी, लेकिन परिवार से दूर रहना उन्हें खलता रहा।

वापसी और ठहराव

भारत लौटने के बाद गुरप्रीत ने सोचा – अब अपना कॉन्ट्रैक्टिंग बिज़नेस जमाना है। लेकिन ग्राहक ढूंढना मुश्किल था।
वो पर्चे बांटते, जान-पहचान के लोगों को फोन करते, लेकिन बड़े प्रोजेक्ट मिलना लगभग नामुमकिन था।

वेबसाइट का जादू

एक दिन उनके भतीजे ने कहा –
"पाजी, आजकल लोग गूगल पर कॉन्ट्रैक्टर सर्च करते हैं। एक वेबसाइट बनाओ, फिर देखो कैसे काम मिलेगा।"

गुरप्रीत ने एक प्रोफेशनल वेबसाइट बनवाई जिसमें उनकी पुरानी प्रोजेक्ट की तस्वीरें, सर्विस लिस्ट, लोकेशन, और “Get a Quote” बटन डाला गया।

कमाल का असर

वेबसाइट बनते ही, गूगल पर और आसपास के शहरों में उनका नाम दिखने लगा।
अब ग्राहक खुद उन्हें कॉल करने लगे, और उन्हें पहली बार बड़े-बड़े हाउसिंग और रेनोवेशन प्रोजेक्ट मिले।

आज के गुरप्रीत सिंह

आज गुरप्रीत की टीम 15 से ज़्यादा वर्कर्स के साथ काम कर रही है।
विदेश में जितना मेहनत करके भी वो कमा नहीं पाए, उससे कहीं ज्यादा अब वह भारत में रहकर, अपने परिवार के साथ रहकर कमा रहे हैं।

गुरप्रीत मुस्कुराकर कहते हैं –
"दुबई और कुवैत ने मुझे अनुभव दिया, लेकिन पठानकोट की एक वेबसाइट ने मुझे असली पहचान दी।"